पश्चिम एशिया में इस्राइल और हमास के बीच जारी संघर्ष के चलते हालात तेजी से बदल रहे हैं। दक्षिण एशिया में मौजूदगी के बावजूद पाकिस्तान भी इसमें खासी दिलचस्पी दिखा रहा है।
By: Sandeep malviya
Sep 18, 202510:13 PM
तुर्किये । पश्चिम एशिया में इस्राइल और हमास के बीच जारी संघर्ष के चलते हालात तेजी से बदल रहे हैं। दक्षिण एशिया में मौजूदगी के बावजूद पाकिस्तान भी इसमें खासी दिलचस्पी दिखा रहा है। इस बीच बुधवार को इस्लामिक जगत पर खतरे का बहाना बनाकर पाकिस्तान ने सऊदी अरब से रक्षा समझौता कर लिया। रिपोर्ट्स की मानें तो इसके तहत दोनों में से किसी भी देश के खिलाफ किसी भी हमले को दोनों के खिलाफ आक्रमण माना जाएगा।
गौरतलब है कि भारत की तरफ से आपरेशन सिंदूर को अंजाम दिए जाने के बाद से ही पाकिस्तान लगातार अरब और इस्लामिक देशों के साथ आने की बात करता रहा है। ऐसे में जब इस्राइल ने हमास को खत्म करने के लिए न सिर्फ फलस्तीन के गाजा, बल्कि वेस्ट बैंक को भी निशाना बनाया और आसपास के आधा दर्जन देशों पर भी हमले बोले तो इस्लामिक देशों की लामबंदी की कोशिशों में पाकिस्तान ने भी मौका ढूंढना शुरू कर दिया।
इस्राइल की तरफ से इन बेरोकटोक हमलों के बाद अब अरब जगत में एक सैन्य गठबंधन बनाने पर चर्चा शुरू हुई है। बताया गया है कि 40 से ज्यादा अरब और इस्लामिक देश अब अपनी सुरक्षा के लिए पश्चिमी देशों के गठबंधन- नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आॅर्गनाइजेशन (नाटो) की तरह ही एक अलग गठबंधन तैयार करना चाहते हैं। इसे लेकर पाकिस्तान ने भी सहमति जताई है। हालांकि, ऐसे किसी गठबंधन के अस्तित्व में आने से पहले ही पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच समझौता हुआ है।
ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर सऊदी अरब से समझौता जाने के अरब-इस्लामिक नाटो को बनाने का प्रस्ताव कितना पुराना है? हालिया समय में इस सैन्य गठबंधन को बनाने का प्रस्ताव कौन और क्यों लाया है? इसमें कौन-कौन से देश शामिल हो सकते हैं? इसके अलावा भारत के लिए ऐसे किसी अरब नाटो के अस्तित्व में आने के क्या मायने होंगे? आइये जानते हैं...
2015 में मिस्र ने पहली बार अरब देशों के एक साझा सैन्य गठबंधन के गठन का प्रस्ताव आगे रखा था। शुरूआत में मिस्र का यह प्रस्ताव यमन और लीबिया में सरकार और बागी गुटों के बीच चल रहे संघर्ष को खत्म कराने के मकसद से रखा गया था। तब कई देशों ने कहा था कि वह ऐसे गठबंधन का समर्थन करते हैं। हालांकि, तब अरब देशों के यह दावे खोखले साबित हुए। गठबंधन के नेतृत्व और फंडिंग को लेकर योजनाएं आगे नहीं बढ़ पाईं।