दहेज के लिए 26 वर्षीय निक्की भाटी की नृशंस हत्या। हालांकि चौंकाने वाली है, लेकिन दुर्भाग्य से अनोखी नहीं है। दशकों से सख्त कानून लागू होने के बाद भी देश में हर साल हजारों निर्दोष बेटियां दहेज की मांग के चलते अपनी जान गंवा देती हैं। आंकड़ों में देखा जाए तो भारत में 2022 में दहेज के कारण 6,450 मौतें दर्ज की गईं, यानी हर दिन औसतन 18 बेटियों की हत्या हुई।
By: Arvind Mishra
Aug 26, 20252 hours ago
दहेज के लिए 26 वर्षीय निक्की भाटी की नृशंस हत्या। हालांकि चौंकाने वाली है, लेकिन दुर्भाग्य से अनोखी नहीं है। दशकों से सख्त कानून लागू होने के बाद भी देश में हर साल हजारों निर्दोष बेटियां दहेज की मांग के चलते अपनी जान गंवा देती हैं। आंकड़ों में देखा जाए तो भारत में 2022 में दहेज के कारण 6,450 मौतें दर्ज की गईं, यानी हर दिन औसतन 18 बेटियों की हत्या हुई। दरअसल, पांच राज्य यानी यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और पश्चिम बंगाल मिलकर देश की 70 फीसदी दहेज हत्याओं के लिए जिम्मदा हैं। ये साफ दिखाता है कि ये समस्या कितनी गहरी जड़ें जमा चुकी है। यहां सबसे शर्मनाक बात यह है कि इतनी जागरूकता के बावजूद दहेज आज भी एक बेहद पिछड़ी हुई सोच है। हैरानी इस बात की है कि ये रुकता नहीं, बल्कि बार-बार होता है, और समाज मूक दर्शक बना खब कुछ देख रहा है। इस बीच नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) कु आंकड़े सामने आए हैं। जिसमें दावा किया गया है कि 2022 में भारत में औसतन हर दिन 18 औरतें दहेज की वजह से जान गंवा दी। साल 2018 से 2022 के बीच कुल 34,477 औरतों की जान इस हिंसा ने ले ली। इस समस्या का फैलाव हर जगह एक जैसा नहीं है। उत्तर प्रदेश लगातार सबसे ज्यादा दहेज हत्याओं वाला राज्य रहा है। 2022 में अकेले यूपी में 2,138 केस दर्ज हुए। इसके बाद बिहार में 1,057 और मध्य प्रदेश में 518 मामले आए। दक्षिण भारत की तस्वीर कुछ अलग है, यहां कर्नाटक में 165, तेलंगाना में 137 और केरल में सिर्फ 11 केस दर्ज हुए।
पिछले पांच साल (2018-2022) में यूपी ने 11,488 दहेज हत्याओं के मामले दर्ज किए। यानी औसतन हर दिन 6 औरतों की जान सिर्फ दहेज की वजह से गई। इसका मतलब यह हुआ कि देश में होने वाली हर तीसरी दहेज हत्या सिर्फ यूपी में होती है। यहां दहेज मौत का औसत 10.3 प्रति लाख महिलाएं है, जबकि राष्ट्रीय औसत 5.2 है। बिहार में ये आंकड़ा 8.9, मध्य प्रदेश में 6.6, राजस्थान में 5.7 और पश्चिम बंगाल में 4.8 है।
निक्की भाटी का केस दिखाता है कि ये आंकड़े सिर्फ नंबर नहीं हैं, बल्कि हर नंबर के पीछे एक चेहरा, एक कहानी और एक टूटता हुआ परिवार है। पुलिस के मुताबिक, निक्की को महीनों तक ससुराल वालों ने तंग किया और मारा-पीटा। आखिरकार उसे जिंदा जला दिया गया। ये केस इसलिए अलग नहीं है कि इसमें ज्यादा क्रूरता थी, बल्कि इसलिए कि हजारों औरतों के साथ हर साल यही होता है। बस उनकी कहानियां सामने नहीं आ पातीं।
दहेज से हुई मौतों पर ज्यादातर आधिकारिक डेटा सिर्फ राज्य स्तर पर मिलता है। जिले या शहर के आंकड़े पाना मुश्किल है। पुलिस एफआईआर दर्ज तो करती है, लेकिन आम जनता को इन तक पहुंच नहीं मिलती। पीड़ित परिवारों के लिए ये सिस्टम और ज्यादा दर्दनाक हो जाता है। अदालतों पर भी ऐसे मामलों का बोझ बढ़ता जा रहा है। 2022 में दहेज निषेध अधिनियम के तहत 13,000 से ज्यादा केस दर्ज हुए। यानी हर दो घंटे में तीन केस।