विधेयकों की मंजूरी के बारे में समय सीमा तय करने के केस में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए रिफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को सुनवाई करेगा। राष्ट्रपति का रिफरेंस सुप्रीम कोर्ट की जारी सुनवाई सूची में पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई पर लगा है।
By: Arvind Mishra
Jul 20, 20251 hour ago
विधेयकों की मंजूरी के बारे में समय सीमा तय करने के केस में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए रिफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को सुनवाई करेगा। राष्ट्रपति का रिफरेंस सुप्रीम कोर्ट की जारी सुनवाई सूची में पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई पर लगा है। जो पीठ मामले पर मंगलवार को सुनवाई करेगी उसमें प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा तथा जस्टिस एएस चंदुरकर शामिल हैं। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ 22 जुलाई को राष्ट्रपति के संदर्भ पर विचार करेगी कि क्या राज्य विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर विचार करते वक्त राष्ट्रपति की ओर से विवेकाधिकार का प्रयोग करने के लिए न्यायिक आदेशों से समय-सीमाएं निर्धारित की जा सकती हैं।
मई में राष्ट्रपति मुर्मू ने अनुच्छेद 143(1) के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग किया और 8 अप्रैल के अपने फैसले पर सुप्रीम कोर्ट से 14 महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे, जिसमें राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए राज्य विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने की समय-सीमाएं निर्धारित की गई थीं।
राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से जो 14 सवाल पूछे हैं इसमें उन्होंने राज्यपाल की शक्तियों, न्यायिक दखल और समयसीमा तय करने जैसे विषयों पर स्पष्टीकरण मांगा है। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में दिए अपने फैसले में कहा था कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है। राज्यपाल की ओर से भेजे गए विधेयक पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा। अगर तय समयसीमा में फैसला नहीं लिया जाता तो राष्ट्रपति को राज्य को इसकी वाजिब वजह बतानी होगी।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा कि राष्ट्रपति किसी विधेयक को पुनर्विचार के लिए राज्य विधानसभा के पास वापस भेज सकते हैं। अगर विधानसभा उस विधेयक को फिर से पारित करती है तो राष्ट्रपति को उस पर अंतिम फैसला लेना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। अदालत ने कहा कि अगर राज्यपाल ने मंत्रिपरिषद की सलाह के खिलाफ जाकर फैसला लिया है तो सुप्रीम कोर्ट के पास उस विधेयक को कानूनी रूप से जांचने का अधिकार होगा।