मप्र में स्वास्थ्य विभाग में अंधेर नगरी चौपट राजा जैसा हाल है। स्वास्थ्य विभाग अपने सेवा भर्ती नियमों को बनाता है. संशोधन करता है और फिर भूल जाता है, लेकिन मुसीबत आवेदकों की होती है।
By: Star News
Jun 07, 20252 hours ago
भोपाल। मप्र में स्वास्थ्य विभाग में अंधेर नगरी चौपट राजा जैसा हाल है। स्वास्थ्य विभाग अपने सेवा भर्ती नियमों को बनाता है. संशोधन करता है और फिर भूल जाता है, लेकिन मुसीबत आवेदकों की होती है। इस मर्तबा परेशान हो रहे हैं सरकारी नौकरी की आस रखने वाले फार्मासिस्ट, जिनकी भर्ती स्वास्थ्य विभाग में हो रही है, लेकिन गणित संकाय से उत्तीर्ण होकर फार्मेसी करने वाले आवेदकों को अपात्र किया जा रहा है।
आइये समझते हैं मप्र के स्वास्थ्य विभाग की मनमानी से कैसे छात्रों का सरकारी नौकरी का सपना चूर-चूर हो रहा है।
स्वास्थ्य विभाग में फार्मासिस्ट की भर्ती के लिए सबसे पहले 1989 में नियम बनाए गए थे. जिसका राजपत्र में प्रकाशन 20 अक्टूबर 1989 को मप्र लोक स्वास्थ्य एवं कल्याण विभाग अलिपिकीय तृतीय श्रेणी सेवाओं में भर्ती नियम से हुआ था। इस नियम के कंडिका 18 में फार्मासिस्ट की भर्ती में पात्रता के 3 शर्ते थीं।
इस नियम के लागू होने के 5 वर्ष बाद 1994 को इन नियमों में संशोधन किया गया जिसका राजपत्र में प्रकाशन 9 दिसंबर 1994 को हुआ। विभाग ने फार्मासिस्ट के भर्ती की पात्रता में पहली शर्त (हायर सेकंडरी में जीवविज्ञान) स्पष्ट रूप से हटा दी। और शेष दो शर्तों पर यथावत रखा गया।
इसके बाद तीसरा संशोधन 2023 में और चौथा संशोधन 2025 में किया गया, जिनका राजपत्र में प्रकाशन किया गया। इन दोनों संशोधनों में फार्मासिस्ट के भर्ती के लिए पात्रता में भर्ती नियम 1989 का उल्लेख तो किया गया, लेकिन स्वास्थ्य विभाग के लापरवाह अफसर 1994 का महत्वपूर्ण संशोधन का उल्लेख करना भूल गए। दोनों संशोधनों में फार्मासिस्ट की भर्ती की पात्रता को 1989 के पहली बार प्रकाशित भर्ती नियम की तरह तीन शर्ते कर दीं, जिसमें विज्ञान समूह में गणित छोड़कर सिर्फ भौतिकी, रसायन और जीव विज्ञान विषय से 10 अथवा 12 वीं पास करने वाले आवेदक को ही भर्ती में पात्र किया गया।
एक्सपर्ट का कहना
राजपत्र में विभागों द्वारा पूर्व में प्रकाशित नियम में संशोधन के संबंध में जब भी जानकारी प्रकाशन के लिए भेजी जाती है तो उसमें पूर्व के नियम और उसमें यदि संशोधन हुए हैं तो दोनों की तारीखों का उल्लेख किया जाता है। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो यह माना जाएगा कि जिस संशोधन की तारीख और संशोधन का उल्लेख नहीं किया गया है वे नियम और संशोधन विभाग में मान्य हैं।
भेदभाव की मनमानी मिसाल
मप्र के स्वास्थ्य विभाग की मनमानी की यह बडी मिसाल है, जो फार्मेसी करने वाले आवेदकों को गणित और विज्ञान के अन्य विषय में न केवल विभाजित करती है और बल्कि गणित संकाय से उत्तीर्ण होकर फार्मेसी करने वाले आवेदक को अपात्र भी कर देती है। इसका सीधा आशय है कि विज्ञान समूह में भौतिक, रसायन और जीवविज्ञान से 10 अथवा 12 वीं करने के बाद फार्मेसी करने वाले आवेदक को तो स्वास्थ्य विभाग में नौकरी मिलेगी, लेकिन गणित विषय से 10 अथवा 12 वीं करने के बाद फार्मेसी पास करने वाले आवेदक को स्वास्थ्य विभाग में नौकरी के पात्र भी नहीं माना जाएगा।
जब गणित वाले फार्मासिस्ट को नौकरी नहीं तो फार्मा कोर्स में एडमिशन क्यों?
मप्र में स्वास्थ्य विभाग एक अबूझ पहेली की तरह है। बड़ा सवाल यही है कि जब फार्मासिस्ट की भर्ती में गणित संकाय से 10 वीं अथवा 12 वीं पास कर फार्मासिस्ट का कोर्स करने वाले छात्रों को अपात्र मानता है और नौकरी के योग्य नहीं समझता है तो मप्र की फार्मेसी कौंसिल ऐसे छात्रों को फार्मा के कोर्स में एडमिशन क्यों देती हैं।
फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया की पुष्टि भी दरकिनार
28 जून 2022 को फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया की रजिस्ट्रार अर्चना मुद्गल ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की तत्कालीन मिशन संचालक प्रियंका दास को स्पष्ट ई-मेल में लिखा कि "डी.फार्मा और बी.फार्मा में प्रवेश के लिए हायर सेकंडरी में भौतिकी, रसायन और गणित/जीवविज्ञान कोई भी संयोजन मान्य है।" यानी सरकार की स्वीकृत नीति के अनुसार गणित विषय वाले छात्रों को बाहर करने का कोई वैध आधार ही नहीं है। लेकिन स्वास्थ्य विभाग ने यह ई-मेल और नीतिगत स्पष्टता को भी अनसुना कर दिया।
मूल्य चुकाते छात्र, नीतियों को ठेंगा दिखाते अफसर
यह मामला अब केवल तकनीकी पात्रता का नहीं, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही और नीति के उल्लंघन का भी बन चुका है। विभाग भर्ती में 1994 के गजट संशोधन को निरस्त भी नहीं किया है और मानने से भी इंकार कर रहा है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की इस लापरवाही पर की जवाबदेही भी तय नहीं हो रही है।
छात्रों में आक्रोश, संगठन सामने आया
वहीं प्रदेश भर के फार्मेसी छात्रों और संगठन इस अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं। मप्र फार्मासिस्ट एसोसिएशन ने विभाग की इस लापरवाही से उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल को अवगत भी कराया है औऱ संशोधन को मान्य करने का आग्रह भी किया है।