केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के लेख में जानें कैसे भारत ने पिछले 11 सालों में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए 'सुविधाजनक कार्रवाई' के सिद्धांत को अपनाते हुए महत्वपूर्ण प्रगति की है। जानें पंचामृत, मिशन लाइफ और अन्य प्रमुख पहलें।
By: Star News
Jun 27, 202518 hours ago
भूपेंद्र यादव
मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के प्रभाव आज पूरी दुनिया में महसूस किए जा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) की छठी आकलन रिपोर्ट स्पष्ट रूप से बताती है कि 2011-20 के दशक में पृथ्वी का तापमान, पूर्व-औद्योगिक काल (1850-1900) की तुलना में 1.1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है। विडंबना यह है कि विकसित देश, जो वैश्विक कार्बन बजट में असंगत हिस्सेदारी रखते हैं, जलवायु कार्रवाई को गति देने के लिए आवश्यक संसाधन प्रदान करने में अभी भी हिचकिचा रहे हैं।
'सर्वे भवन्तु सुखिनः'
इस वैश्विक परिदृश्य के बीच, भारत का प्राचीन वैदिक सिद्धांत 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' (सभी सुखी हों) सहस्राब्दियों से मानव सभ्यता का मार्गदर्शन करता रहा है। आज जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के कारण अस्तित्व की चुनौती से जूझ रही है, तो जलवायु प्रबंधन के प्रति भारत के कालातीत वैदिक ज्ञान की प्रतिध्वनि विश्व को एक नया मार्ग दिखा रही है।
अनियमित मौसम पैटर्न
एक ओर, वैश्विक समुदाय अक्सर तापमान वृद्धि, अनियमित मौसम पैटर्न और आपदाओं में वृद्धि जैसी 'असुविधाजनक सच्चाइयों' में उलझा हुआ है। दूसरी ओर, भारत ने 'सुविधाजनक कार्रवाई' के दर्शन को अपनाया है। हमारे सभ्यतागत लोकाचार में निहित इस दृष्टिकोण ने पिछले ग्यारह वर्षों में भारत को एक कर्तव्यनिष्ठ वैश्विक जलवायु नागरिक में बदल दिया है।
अथर्ववेद का एक श्लोक है:
"यत्किञ्च पृथिव्यां पृथिवीमनुत्तं हितंचेद्तत्तवायतु।
मानः पृथिव्याः परं हिंसिष्ठाः॥"
अर्थात, "पृथ्वी का जो कुछ भी हम खनन करते हैं, उसे जल्दी से भरें, हम पृथ्वी के प्राण-तत्वों पर आघात न करें और न ही उसके हृदय को क्षति पहुंचाएं।" यह श्लोक आधुनिक जलवायु विज्ञान से हजारों साल पहले के पुनर्निर्माण पर आधारित प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के सिद्धांतों को दर्शाता है। इस प्राचीन ज्ञान को जलवायु कार्रवाई के प्रति हमारे दृष्टिकोण पर आधारित समकालीन नीतिगत ढाँचों में पिरोया गया है, जिससे पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक कार्रवाई का एक अनूठा तालमेल बना है।
शासन की प्राथमिकता बनी जलवायु कार्रवाई
इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, 2014 में पदभार ग्रहण करने के कुछ सप्ताह के भीतर ही प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने एक सरल लेकिन दूरगामी प्रशासनिक निर्णय के माध्यम से अपनी जलवायु प्रतिबद्धता और दूरदर्शिता का परिचय दिया। उन्होंने पर्यावरण और वन मंत्रालय में 'जलवायु परिवर्तन' को जोड़कर, जलवायु कार्रवाई को क्षेत्र-संबंधी चिंता के सीमित दायरे से निकालकर शासन की प्राथमिकता बना दिया। 2015 में जलवायु परिवर्तन के लिए राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (NAFCC) का निर्माण इस प्रतिबद्धता का ही उदाहरण है, जिसके द्वारा राज्यों को जलवायु संकट से निपटने से संबंधित संसाधन प्रदान किए जाते हैं। कई राज्य सरकारों ने अपने स्वयं के जलवायु परिवर्तन विभाग स्थापित करके इस कदम का समर्थन किया, जिससे जलवायु कार्रवाई की एक संघीय व्यवस्था तैयार हुई।
वैश्विक जलवायु वार्ता में भारत का नेतृत्व
2015 में, प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, भारत ने वैश्विक जलवायु वार्ता में अग्रणी भूमिका निभाई। प्रधानमंत्री स्वयं पेरिस गए और पेरिस समझौते को अंतिम रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे धरती के संरक्षण में भारत की उच्च-स्तरीय प्रतिबद्धता स्पष्ट हुई। ऐसे देशों के विपरीत, जो जलवायु प्रतिबद्धताओं को बोझ के रूप में देखते हैं, भारत ने इसी वर्ष पेरिस में आयोजित COP-21 में अपने पहले राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) को पूरा करके ठोस कार्रवाई का प्रदर्शन किया। यह देश की घरेलू अनिवार्यताओं और अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों द्वारा निर्देशित वैश्विक समुदाय के प्रति हमारी जिम्मेदारी का प्रकटीकरण था।
पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर करने के समय यानी 2015 में ही एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) का गठन हुआ, जो लगातार मजबूत होता गया और आज 120 से अधिक देश इसके सदस्य हैं। इस गठबंधन ने सौर ऊर्जा-संपन्न देशों के लिए स्वच्छ ऊर्जा समाधानों पर सहयोग करने हेतु एक मंच तैयार किया है। नवीकरणीय ऊर्जा (आरई) को दिए गए प्रोत्साहन से, इसकी स्थापित क्षमता 2014 के मात्र 76 गीगावाट से बढ़कर मार्च 2025 में 220 गीगावाट हो गई है और 2030 तक इसके 500 गीगावाट तक पहुंचने की संभावना है। स्थापित क्षमता के संदर्भ में भारत आरई में चौथे, पवन ऊर्जा में चौथे और सौर ऊर्जा में तीसरे स्थान पर है। एक दशक में यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि है।
जन-केंद्रित और परिवर्तनकारी पहलें
सरकार द्वारा अपनी कई योजनाओं के माध्यम से परिवर्तनकारी जलवायु कार्रवाई के लिए भारत की प्रतिबद्धता को गति प्रदान की गई है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (2016) से लाखों महिलाओं को खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन मिला, जो दर्शाता है कि जलवायु कार्रवाई का सामाजिक न्याय के साथ तालमेल कैसे बिठाना चाहिए। पीएम-कुसुम योजना (2019) ने किसानों को सौर ऊर्जा समाधानों के ज़रिए सशक्त बनाया, वहीं रूफटॉप सौर कार्यक्रम से पूरे देश में नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने में तेज़ी आई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 सितंबर, 2019 को न्यूयॉर्क शहर में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में आपदा-रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) की घोषणा की, जिसकी औपचारिक शुरुआत 28 अगस्त, 2019 को हुई थी। इससे आपदा-रोधी अवसंरचना विकास को बढ़ावा देने में एक वैश्विक साझेदारी का निर्माण हुआ। स्वीडन के साथ साझेदारी में लीड-आईटी (उद्योग में बदलाव के लिए नेतृत्व समूह) बनाया गया, जो जलवायु लक्ष्यों के लिए औद्योगिक बदलाव के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। सौर विनिर्माण (2020) के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना से घरेलू सौर विनिर्माण क्षमता मजबूत हुई, आयात पर निर्भरता कम हुई और एक मजबूत स्वदेशी सौर इकोसिस्टम का निर्माण हुआ।
महत्वाकांक्षी 'पंचामृत' और 'मिशन लाइफ'
2021 में ग्लासगो में आयोजित COP 26 में भारत ने देश के जलवायु परिदृश्य को और मजबूत करते हुए ऐतिहासिक घोषणाएँ कीं। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अपने वक्तव्य में भारत के महत्वाकांक्षी अभियान पंचामृत की घोषणा की गई। पंचामृत यानी पाँच अमृत तत्व, जिसमें जलवायु प्रतिबद्धता को बढ़ाना और 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना शामिल है। इसी संबोधन के दौरान, प्रधानमंत्री ने मिशन लाइफ – पर्यावरण के लिए जीवनशैली की शुरुआत की, ताकि वैश्विक स्तर पर नागरिकों को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ सामूहिक लड़ाई में शामिल किया जा सके। इस ऐतिहासिक प्रतिबद्धता ने भारत को विकासशील देशों के बीच जलवायु नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित किया।
2 नवंबर, 2021 को ग्लासगो में COP 26 के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी ने आईआरआईएस (सुदृढ़ द्वीप देशों के लिए अवसंरचना) लॉन्च किया, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, फिजी, जमैका, मॉरीशस और यूके के प्रधानमंत्रियों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम से जलवायु-संवेदनशील देशों के प्रति वैश्विक एकजुटता प्रदर्शित की गई।
भारत ने 2022 में अपने एनडीसी को परिवर्तित करते हुए उसमें संरक्षण और संयम की परंपराओं और मूल्यों के आधार पर स्वस्थ और सतत जीवनशैली को बढ़ावा देने के लिए एक गुणात्मक लक्ष्य के रूप में मिशन लाइफ को शामिल किया। इसी क्रम में, नवंबर 2022 में भारत ने अपनी दीर्घकालिक कम उत्सर्जन विकास रणनीति (LT-LEDS) प्रस्तुत की, जिसमें 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के साथ-साथ सतत विकास के लिए एक रूपरेखा प्रदान की गई है। इसी वर्ष राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन का शुभारंभ हुआ, जिससे भारत हरित हाइड्रोजन उत्पादन और निर्यात में एक वैश्विक केंद्र के रूप में उभरा, जो ऊर्जा स्वतंत्रता और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को अपनाने की हमारी दृष्टि के अनुरूप है।
विकसित भारत @ 2047 की ओर
वर्ष 2023 में विकसित भारत 2047 की घोषणा, एक महत्वपूर्ण उपलब्धि साबित हुई, जो 2047 तक "पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था" तथा "प्रकृति और प्रगति" के बीच एक नाजुक संतुलन बनाए रखते हुए विकसित राष्ट्र बनने के प्रति भारत का विज़न है। भारत की जलवायु कार्रवाई, 2047 तक विकसित भारत के विज़न के अनुरूप है। जलवायु परिवर्तन को कम करने की दिशा में कार्रवाई के अलावा, भारत ने व्यापक जलवायु रिपोर्टिंग का प्रदर्शन करते हुए द्विवार्षिक प्रगति रिपोर्ट के साथ अपना अनुकूलन संवाद भी प्रस्तुत किया है।
2024 में बदलाव लाने वाली दो नागरिक-केंद्रित पहलों की शुरुआत हुई। पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना ने सौर ऊर्जा तक पहुँच को लोकतांत्रिक बनाया, जबकि "एक पेड़ माँ के नाम" के शुभारंभ ने वनीकरण को एक जन आंदोलन का रूप दिया। इन कार्यक्रमों के ज़रिये प्रत्येक नागरिक को जलवायु कार्रवाई में योगदान देने के लिए सशक्त बनाया गया।
ऊर्जा सुरक्षा और स्थायित्व हासिल करने के लिए परमाणु ऊर्जा को एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में मान्यता देते हुए, 2025 में विकसित भारत के लिए राष्ट्रीय ऊर्जा मिशन और राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन का शुभारंभ किया गया। आम बजट 2025-26 में इसके लिए 20,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। इस बजट के साथ यह परमाणु ऊर्जा मिशन, छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) के अनुसंधान और विकास पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसका लक्ष्य 2033 तक कम से कम पांच स्वदेशी रूप से डिज़ाइन किए गए और संचालन योग्य SMR विकसित करना है। निस्संदेह यह मिशन भारत को अगली पीढ़ी की परमाणु प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी देश के रूप में स्थापित करेगा।
भारत 2030 तक अपने उन्नत एनडीसी को प्राप्त करने के लिए प्रगति-पथ पर तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, और 2030-35 की अवधि के लिए एनडीसी के संशोधन की तैयारी कर रहा है। भारत जलवायु कार्रवाई में निरंतर सुधार का प्रदर्शन कर रहा है और संभावना है कि देश शीघ्र ही पहली राष्ट्रीय अनुकूलन योजना भी प्रस्तुत करेगा।
भारत, शमन उपायों के माध्यम से आपूर्ति पक्ष पर और व्यक्तिगत स्तर पर पर्यावरण-अनुकूल जीवनशैली को बढ़ावा देकर मांग पक्ष पर जलवायु कार्रवाई कर रहा है। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि भारत ने जनभागीदारी के आह्वान के साथ जलवायु कार्रवाई को सरकारी जिम्मेदारी से एक जन आंदोलन में बदल दिया है।
भारत की अंतर्राष्ट्रीय जलवायु पहल "वसुधैव कुटुंबकम" के प्राचीन भारतीय सिद्धांत को मूर्त रूप देती है। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA), आपदा-रोधी अवसंरचना के लिए गठबंधन (CDRI), वैश्विक जैव-ईंधन गठबंधन, लीड-आईटी और अंतर्राष्ट्रीय बिग कैट गठबंधन (IBCA) चुनौतियों पर अटके रहने के बजाय, सिद्धांतों पर अमल करने और समाधान साझा करने की भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।
भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान, पर्यावरण और जलवायु कार्य समूह से अलग कई अन्य कार्य समूहों में जलवायु संबंधी विचारों को मुख्य धारा में लाया गया। विकास कार्य समूह ने सतत विकास के लिए जीवनशैली पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि ऊर्जा कार्य समूह ने न्यायसंगत और समावेशी ऊर्जा स्रोतों में बदलाव पर ध्यान केंद्रित किया। यह पहलें दिखाती हैं कि जलवायु संबंधी चिंताएँ क्षेत्रीय सीमाओं को कैसे पार करती हैं। भारत ने वैश्विक जैव-ईंधन गठबंधन की भी शुरुआत की, जिससे स्थायी जैव-ईंधन पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए एक मंच तैयार हुआ।
"असुविधाजनक सत्य" को "सुविधाजनक कार्रवाई" में बदलते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने सिद्ध किया है कि जलवायु नेतृत्व के लिए न केवल वैज्ञानिक समझ की आवश्यकता होती है, बल्कि मानवीय कार्रवाई को प्राकृतिक सामंजस्य के साथ जोड़ने की समझ की भी ज़रूरत होती है।
लेखक: (केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री हैं)